
अब वक्त आ गया,
सूचित कर रहा हूं संवाद।
जागो हिन्द के लाल
फिर से बुलंद करो इंकलाब।
फिर से बुलंद करो इंकलाब
वक्त के आधियों से बेखबर हो तुम,
हर तरफ है उजाला कुछ अंधेरो से बेखबर हो तुम।
ये जो सत्ता सतरंज का चाल बना है,
सांप नेवले का प्रहार बना है।
तुम न्याय की उम्मीद लिए बैठे हो,
अपनी गर्दनो की सौदा तलवार से किएं हो।
परिवर्तन थम सी जाती है,
अगर सत्ता लंबा ठहर सी जाती है।
हम न जागे, तुम न जागे,
कैसे होगा बदलाव।
अब वक्त आ गया,
सूचित कर रहा हूं संवाद।
जागो हिन्द के लाल
फिर से बुलंद करो इंकलाब।
अब न जागे तुम फिर वही अंधेरा आएगा,
जहां से चले थे हम,कदम वापस उसी पथ पर चला जाएगा।
पुनः अंधेरे में उजाला लाना होगा,
चांद को दीया बनाना होगा।
जन मन में राष्ट्र चेतना जिंदा करना है तो
राष्ट्रनिर्माण का नवगान लिखना होगा।
कलंक जो लगा है देश पर,
आओ मिलकर धोये दाग।
कदम से कदम मिलाकर हम चलेगे तो
शुरू होगा नया भारत का आगाज़।
अब वक्त आ गया है,
सूचित कर रहा हूं संवाद।
जागो हिन्द के लाल,
फिर से बुलंद करो इंकलाब।
सुनो जन मन अपने ही घर में शैतान बैठा है,
जरा सी लालच क्या मिली,
भारत कि हकीकत दुश्मन जान बैठा है।
ऐसे आतंक के आकाओं को खत्म करना होगा,
पुनः सुभाष,आजाद,भगत को लाना होगा।
ठण्ड पड़ गयी जो रक्त उसमें फिर से उबाल लाना होगा,
जन गण मन में राष्ट्रीयता जगाना होगा।
दुश्मन को ज़बाब मुंहतोड़ देना होगा,
इसके लिए भारत को आत्मनिर्भर भारत बनाना होगा।
ये पक्षपात की राजनीति बंद करो,
कम से कम एक देश तो हिन्दू का हो।
वक्त है अभी भी जागो,
सोने से न बचेगा लाज।
अब वक्त आ गया है,
सूचित कर रहा हूं संवाद।
जागो हिन्द के लाल,
फिर से बुलंद करो इंकलाब।
आज नेता बने हैं ऐसे ऐसे फेंके खूब गहराई से,
आसमां भी शरमा जाए अपने इस ऊंचाई से।
वादा करके भुल जाते हैं,
झूठी आशाओं का अंबार लगाते हैं।
जयचंदो महलों से नीचे झांक कर देखो,
जिस जनता ने सत्ता दिया उसी के अरमानों को कुचल रहे हो।
लुटो और लुटाओ का नारा है,
राजनीति ने जनता का हक सदा मारा है।
सरकार के हां में हां जो न बोले वो विद्रोही है,
कुर्सी मिल जाए तो जनता देशद्रोही है।
विकसित भारत सपना हो साकार,
देश रहे अखण्ड ऐसे निर्णय का हो आगाज़।
अब वक्त आ गया,
सूचित कर रहा हूं संवाद।
जागो हिन्द के लाल,
फिर बुलंद करो इंकलाब।
कवि: नीतिश कुमार
Kavi: Nitish Kumar
Publish By The DN Classic copyright holder 23rd January, 2022.