
बेटी हूं बोझ नहीं,
तुम्हारे उम्मीदो से गिरा सोच नही।
कोई फर्क नहीं पड़ता तुम कौन हो,
जिस कोख से जन्म लिया उसी पर मौन हो।
मेरी संवेदनाओं का तमाशा क्यूं बनाया जाता है,
मेरी आने की आहट मात्र से सन्नाटा छा जाता है।
मेरे अपने ही मुझे मारने कि साजिश करता है,
इसीलिए तो भ्रूण हत्या होता है।
बेटियों को कोख में मारोगे तो,
बहन,बेटी,बहू कहां से लाओगे।
क्या मेरा कोई अधिकार नही,
सबकुछ निर्धारित तुम करते हो।
जरा सी चूक क्या हुई,
जालिम तुम तो जान ही ले लेते हो।
दहेज़ प्रथा भी किसी रोग सा फैल गया है,
न जाने कितने मासूम बेटियों को जिंदा निगल गया है।
हवाओं को मुठ्ठी में कर लो ये मुमकिन तो नहीं,
बेटियां कुछ कर नहीं सकती ये जरूरी तो नही।
जब लांघी दहलीज मैंने पाबंदियो कि क्या गजब का शोर हुआ।
आते ही गई चांद पर क्या जबाब मुंहतोड़ दिया।
आज हर क्षेत्र में मेरी हिस्सेदारी है,
मैं बखूबी जानती हूं क्या मेरी जिम्मेदारी है।
जीवन के संघर्षों में युद्ध विराम भी होना चाहिए,
अरे कबतक कोई लड़ेगा कभी तो विश्राम भी होना चाहिए।
निगाहें गंदी आज भी है मेरे प्रति,
एक लड़की हर पल बहसी समाज से है लड़ती।
बेटियां बेखौफ कहीं जा नही सकती,
दरिन्दो ने डाल रखे है जाल शहर के कोने कोने में।
हदे पार कर दी जमाने ने देर नही लगता दावन जिन्दा जिस्म नोच खाने में।
अरे दुष्टो ऐसे कुकर्म कैसे कर लेते हो,
कोई स्वीकार नही करे स्वीकृति तुम्हारा।
तुम तेजाब से नहला देते हो,
मैं मांगू न्याय तो तुम जिन्दा जला देते हो।
सिमटकर रह जाती है चिखे और चित्कार दलीलें सुनवाई में,
कुछ निर्णय नही निकलता कानूनी कार्रवाई में।
फिर बेखौफ दरिन्दे घूमते रहता है दूसरे तलाश में,
ये दरिन्दगी चलते रहता है कानून के राज में।
न्याय के भरोसे कबतक बैठोगे रहोगे,
बदलाव लाओगे या इतिहास बने रहोगे।
ये निर्णय तुमको लेना होगा,
दरिन्दो को जिंदा दफनाना होगा।
अब और न गढ़ो परिभाषा अपने कायरता की,
कबतक तमाशा देखोगे क्रुरता की।
अब जो कोई बुरी नजर डालेगा मुझ पर,
गर्दन उसकी तलवारों पर तौल दूंगी।
रानी लक्ष्मी बनकर जय भवानी बोल दूंगी,
अब दानवों का यही हश्र करुंगी।
दुनिया से न अब प्रश्न करूंगी,
मेरी लड़ाई है मैं स्वयं लड़ूंगी।
सम्मान दोगे सम्मान दूंगी,
अन्यथा युद्ध तुम्हारे विरुद्ध करूंगी।
और गर्व से कहूंगी लड़की हूं खिलौना या सामान नही,
तुम्हारे मन बहलाने का उद्यान नही।
बेटी हूं बोझ नहीं,
तुम्हारे उम्मीदो से गिरा सोच नही।
कवि: नीतिश कुमार
Kavi: Nitish Kumar
Publish By The DN Classic copyright holder 14th December, 2020.