फिर बसंत आया है

फिर बसंत आया है
फिर बसंत आया है  कवि: नीतिश कुमार

फिर बसंत आया है,
रंगो का त्यौहार लाया है।
बादल भी बरसने को बेताब है,
बनके खूशबू बिखरने को तैयार है।
अजब सी मादकता है बसंत तुझमें,
सब रंग चुके हैं तेरे रंग में।
मस्त हवाओं का आना जाना है,
ये मौसम बड़ा सुहाना है।
ये बहका-बहका मंद-मंद ये बादल,
ला रहा है जैसे सुहाना सावन।
पेड़ो में निकल रही है कोपल नई नई,
फलों के भी आने लगे हैं मंजरी।
ऐसा लग रहा है कि उत्सव है कोई,
रंग बिरंग फूल पत्ती से धरती सज रही।
मस्त हवाओं की झरोखे में झूल रही है डाली डाली,
ऐसा लग रहा है कि प्रकृति बसंत को आमंत्रित कर रही।
खिल रही हैं फूल सज रही उपवन,
वसंत तेरे आने से प्रफुल्लित है मन।
गर्मी से राहत ठंडी से आजादी,
ये बसंत है मौसम की शहजादी।
उत्सव की झड़ियां लगने वाली,
आने वाली है होली और दीवाली।
खुशियों से सराबोर है जीवन,
बस एक तेरी कमी रहने वाली‌।
तेरी यादो ने दस्तक दिया है,
लगता है तुमने याद किया है।
फिर बसंत आया है,
रंगो का त्यौहार लाया है।

कवि: नीतिश कुमार
Kavi: Nitish Kumar
Publish By The DN Classic copyright holder 18th December, 2022.

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