धरती है माता पेड़ पुत्र समान

धरती है माता पेड़ पुत्र समान
“धरती है माता पेड़ पुत्र समान”  कवि: नीतिश कुमार

तुम्ही से चंदा,तुम्ही से सूरज,

तुम्ही से बादल,तुम्ही से सावन।

तुम्ही से धरती,तुम्ही से अंवर,

तुम्ही हो रक्षक,तुम्ही हो भक्षक।

तुम्ही समझ न सके माँ की करुणा

न धरा हरा न रंगीन आसमां ।

दर्द के दर्पण में झांक कर देखो तुम ,

खग बिना आसमां वीरान।

पेड़ बिना जमी बंजर ,

बिन पानी जीवन व्याकुल।

तरक्की का कारवां बनते गए,

चार कदम आगे बढ़े मगर बेखबर सांसो में जहर घोलते गए।

तरक्की का भगवान,

जिसका नाम है इंसान।

स्वार्थ के आगोश में हम ऐसा फंसे,

कि खुद के गला में खुद ही फंदा कसे।

एक-एक वृक्ष काट डाले जो है वरदान,

धरती है माता पेड़ पुत्र समान।

प्रकृति के सीने पर खंजर मारते रहे,

रक्त से लाल पड़ा जमी बंजर हुआ भूमि।

सूरत बदल गई ऐसी,

दुलहन हो नयी मगर श्रृंगार नहीं।

जख्म इतना गहरा हुआ,

दर्द का पेहरा हुआ।

जरा सी करवटें ली धरा,

दिखने लगा करुणा बड़ा।

संकट के आहटों कि घंटी सुनाई दी,

तब तुम निकले मरहम लगाने।

संभल संभले संभल गया ये दिन जरा,

मगर संभल न सका शैतान मन मेरा।

प्रकृति ने भी कर लिया फैसला पुरा करना है पुराना हिसाब,

ला दिया चरो तरफ बर्बादी का सैलाब।

कहीं बह रहा आंशुओं का झरना कहीं गूंज रहा चित्कार,

अब तुम जाना दर्द का अहसास।

तुम्ही ने काटे सिस,

तुम्ही जोड़ रहा है अब।

पहले जाग गया होता,

तो ये अंधेश न छाता।

तुम्ही से चंदा,तुम्ही से सूरज,

तुम्हीं से बादल,तुम्ही से सावन।

तुम्ही से धरती,तुम्ही से अंबर,

तुम्ही हो रक्षक,तुम्ही हो भक्षक।

तुम्ही समझ न सके प्रकृति का करुणा

कवि: नीतिश कुमार
Kavi: Nitish Kumar
Publish By The DN Classic copyright holder 14th December, 2022.

Leave a Comment